इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ
क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ ।
तू भी हीरे से बन गया पत्थर
हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएँ ।
तू कि यकता था बे-शुमार हुआ
हम भी टूटें तो जा-ब-जा हो जाएँ ।
हम भी मजबूरियों का उज़्र करें
फिर कहीं और मुब्तला हो जाएँ ।
हम अगर मंज़िलें न बन पाए
मंज़िलों तक का रास्ता हो जाएँ ।
देर से सोच में हैं परवाने
राख हो जाएँ या हवा हो जाएँ ।
इश्क़ भी खेल है नसीबों का
ख़ाक हो जाएँ कीमिया हो जाएँ ।
अब के गर तू मिले तो हम तुझ से
ऐसे लिपटें तिरी क़बा हो जाएँ ।
बंदगी हम ने छोड़ दी है 'फ़राज़'
क्या करें लोग जब ख़ुदा हो जाएँ ।
कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बे-हिसाब आए
ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यूँ आज तिरे नाम पे रोना आया ।
तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही
तुझ से मिल कर उदास रहता हूँ ।
हम तो समझे थे कि हम भूल गए हैं उन को
क्या हुआ आज ये किस बात पे रोना आया।
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया।
अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग़म की ख़ुशी मुझे
बे-हिस बना चुकी है बहुत ज़िंदगी मुझे।
हम तो कुछ देर हँस भी लेते हैं
दिल हमेशा उदास रहता है।
किसी के तुम हो किसी का ख़ुदा है दुनिया में
मिरे नसीब में तुम भी नहीं ख़ुदा भी नहीं।
जुदाइयों के ज़ख़्म दर्द-ए-ज़िंदगी ने भर दिए
तुझे भी नींद आ गई मुझे भी सब्र आ गया।
इश्क़ में कौन बता सकता है
किस ने किस से सच बोला है।
सुना रहा हूँ किसी और को कथा अपनी
खड़ा हुआ है कोई और आदमी मिरे साथ
वो मुझ को पहले भी तन्हा कहाँ समझता था
फिर उस ने मेरी उदासी भी देख ली मिरे साथ।
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